Thursday, March 31, 2011

हे अग्नि देव - १

हे अग्नि देव, मानवता के प्रभु, देवादिदेव!!! आकाश मार्ग से अवतरित हो इस पृथ्वी पर तुम कृपा करो। सर्वत्र प्रकाशित तेज पुंज पावन,पवित्र,जल विद्युत् तुम मानवता का कल्याण करो, संघर्षण प्रेरित अग्नि प्रवाह न दावानल विकराल बनो, वनस्पति में अम्ल रूप ले औषध बन मानव कल्याण करो। यज्ञ क्रिया के प्रमुख देव ** इस माध्यम से तुम पावनता का संचार करो और देव्य कृपा बनाए रखो। यज्ञ प्रक्रिया के तुम ही ज्ञाता तुम ही इसके धारक, प्रेरक तुम इसके मूल समन्वय हो परिवेक्षक रक्षक आप ही हो, आप को ही हवि अर्पण हो॥ ज्ञानवान, हे अग्निदेव! भद्र पुरुष के पथ प्रदर्शक, विश्वसनीय सर्वत्र सुपोशक, शोभनीय परिधान तुम्हारा, तुम्ही पूज्य, तुम सृजनहार बहुमुखी ज्ञान तुम्हारा है । प्रतिभा सरिता तुमसे बहती, हो दिव्य प्रकाश पुंज तुम्ही, आप को ही हवी अर्पण हो........ सेवक की तुम प्राण प्रतिष्ठा हो, वो भजन उपासना तेरी करते; उनका सर्वस्व तुझे अर्पण तुम परम मित्र मानवता के, उनका तुम से है भाईचारा अब तुम उनका उत्थान करो, ज्ञान गौरव का संचार करो। तुम शक्ति के एकमात्र श्रोत मानवता का कल्याण करो, आप को ही हवी अर्पण हो.... प्रेरणा स्त्रोत: ऋग्वेद २,१

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